History Of Hamirpur District In Hindi
||History Of Hamirpur District In Hindi||History Of Hamirpur Distt in Hindi||
History Of Hamirpur District In Hindi:-क्षेत्र हमीरपुर प्राचीन जिला कांगड़ा का भाग रहा है। वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति पर पूर्वी पंजाब का बड़ा जिला बन कर भारत में शामिल हुआ । उस समय कांगड़ा जिला में कुल्लू, लाहौल-स्पीति भी था । हमीरपुर तहसील के रूप में वर्ष 1888 में अस्तित्व में आया। 1.11.1966 को पंजाब के विभाजन के बाद हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बना। 1 सितम्बर 1972 को जिलों के पुनर्गठन पर हमीरपुर जिला बना। हमीरपुर तहसील का बंगाणा क्षेत्र ऊना जिला में मिलाया गया। इस प्रकार बाकी तहसील को जिला का रूप दिया गया। उस समय सिर्फ दो तहसीलें, हमीरपुर व बड़सर थी। बाद मैं तहसील सुजानपुर, भोरंज और नादौन बनी। जिलों में विकास खंड भोरंज, टौणी देवी, सुजानपुर, बिझड़, नादौन, हमीरपुर हैं। और उप-तहसील कांगू, गलोड़, बिझड़, आदि हैं। पांच राजस्व उप-मंडल हमीरपुर, सुजानपुर, भोरंज, बड़सर व नादौन स्थापित हैं और इन्हीं स्थानों पर पांच विधानसभा क्षेत्र बनाए गए हैं।
प्राचीन इतिहास के अनुसार कांगड़ा का नाम महाभारत के समय से जुड़ा है। पाणिनी लिखित अष्टाध्यायी में हमीरपुर त्रिगर्त राज्य का भाग था। इस क्षेत्र का नाम त्रिर्गत था । भारत खंड, आर्यवरत जालंधर पीठे, त्रिगर्त क्षेत्रे सतलुज-व्यास, रावी नदी नाम मध्ये आदि मंत्रों से पूजन किया जाता था। कांगड़ा का राज पत्र 1924-35 में वर्णन है। इससे पहले कटोच वंश के राजा आलमचंद सन् 1697 में राजा बने, उन्होंने सुजानपुर के पास आलमपुर नगर बसाया। उनका सन् 1700 ई में देहांत हो गया। तत्पश्चात् इसी वंश के राजा हमीर चंद 1700 में राजा बने । उन्होंने हमीरपुर के निकट कोट किले का निर्माण करवाया। इसीलिए इस क्षेत्र का नाम हमीरपुर हो गया। उनका 1747 ई. में देहांत हो गया।
महाराजा संसार चंद इस वंश के शक्तिशाली राजा हुए। उन्होंने 1775 से 1823 तक राज किया। उनका विशाल राज्य कांगड़ा से लेकर नादौन, हमीरपुर, महल मोरिया तक था। उन्होंने मंडी के नाबालिग राजा ईश्वरी सेन को 12 वर्ष बंदी बना कर नादौन में रखा । पहाड़ी राजाओं ने मिलकर गोरखों की मदद से संसार चंद को महल मोरिया में पराजित किया। राजा संसार चंद ने महाराजा रणजीत सिंह से मदद मांगी। इस पर 1809 ई में गोरखों को हराकर फिर राज ले लिया। पर कांगड़ा रियासत के 66 गांव व कांगड़ा किला देना पड़ा। इस प्रकार कांगड़ा क्षेत्र सिक्खों के आधीन 1846 तक रहा। कांगड़ा जिला महाराजा संसार चंद ने सुजानपुर में भव्य महल और मंदिरों का निर्माण करवाया। यह मंदिर शिल्प और चित्रकला के दुर्लभ नमूने हैं। शहर में एक वर्ग किलोमीटर का मैदान बनवाया जिसे चौगान कहते हैं। मुरली मनोहर का मंदिर बनाया, जिसे बंसी वाले का मंदिर कहा जाता है । यह चित्रकला कांगड़ा शैली का अद्भुत नमूना है। 1823 में राजा संसार चंद की मृत्यु के पश्चात् यह क्षेत्र अंग्रेजों के आधीन हो गया । वर्तमान में जिला हमीरपुर का क्षेत्रफल 1118 वर्ग कि. मी. है। समुद्रतल से ऊंचाई 400 मीटर से 1100 मी. है। जिला मुख्यालय की ऊँचाई समुद्रतल से 786 मीटर है। पूर्व में सीर खड्ड व पश्चिम में नादौन व्यास नदी है। दक्षिण में सोलह सिंगी घार, पिपलू महादेव व उत्तर में सुजानपुर से आगे बाकर खड्ड है। जनसंख्या की घनत्व सारे प्रदेश में इस जिला का सबसे ज्यादा है। जनसंख्या 406 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. है। साक्षरता की दर 89.01 है जो प्रदेश में सर्वाधिक हैं और गर्व की बात है। हमीरपुर जिला कांगड़ा व पंजाब राज्य का हिस्सा होते हुए इस क्षेत्र में साथ लगते रीति रिवाजों, परम्पराओं, बोलियों, प्रथाओं का प्रभाव रहा है। कांगड़ा संस्कृति होने के साथ यहां की भिन्न प्रचलित लोक संस्कृति है। यहां के मंदिर श्रद्धा के केंद्र है। जिला के मेले और छिंज बड़े हर्षो उल्लास से मनाए जाते है।
होली मेला - यह मेला महाराजा संसार चन्द ने शुरु किया था | सुजानपुर में किले का निर्माण कराया था। यहां बारहदरी से राजा जी मेले का दृश्य देखते थे । सुजानपुर किला प्राचीन चित्रकारी का अदभुत नमूना है। इसी मेले में एक दूसरे पर रंग फेंकने का रिवाज था । परन्तु अब छोटे बच्चे पिचकारी से रंग खेलते हैं ।
बिलिकलेश्वर मंदिर, लहड़ा गूगा, बाबा बालक नाथ, नौदान का मंदिर, गुरुद्वारा, गसोता महादेव, झनियारी देवी, बाबा साधवड़, पिपलू महोदव, भराड़ी माता तथा सैंकड़ों मंदिर लोगों के मनाने व रोट चढ़ाने की प्राचीन प्रथा सदियों से चली आ रही है। गसोता महादेव मेला ज्येष्ठ मास के पहले सोमवार को शुरू होता है और एक सप्ताह चलता है। यहां 400 वर्ष पुराना शिवलिंग है। पुरानी कहावत है कि “जय बाबा गसोता एक-एक पा के दो-दो होता" । इसी प्रकार माता टौणी देवी, अवाहदेवी, नंर्देश्वर मंदिर सुजानपुर आदि सारे जिला के लोगों के लिए श्रद्धा के स्थान हैं और समय -समय पर सदियों से लोग पूजन करते रहे हैं । यह सभ्यता, मान्यताएं, खान-पान, रीतिरिवाज, इस क्षेत्र की अद्भुत प्राचीन धरोहर हैं।
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