Geographical Features of Himachal Pradesh In Hindi

 Geographical Features of Himachal Pradesh

Geographical Features of Himachal Pradesh


  • Geographical Features of Himachal Pradesh:-हिमाचल शब्द संस्कृत के दो शब्दों हिम अचल की सन्धि से बना है। हिम का अर्थ है - बर्फ और अचल का अर्थ है- पर्वत । अतः बर्फ के पर्वत को ही हिमाचल कहा जाता है। या ऐसा प्रदेश जो कि बर्फीले पहाड़ों में बसा हो। 
  • हिम का अर्थ, हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में पवित्रता, सफेद तथा निषकपटता से लिया जा सकता है, क्योंकि बर्फ भी शुद्ध, निष्कलंक तथा अपने में शीतलता समेटे होती है, और ये सब गुण यहाँ के निवासियों में भी विद्यमान हैं। ये विशेषताएं अपने आप में हिमाचल प्रदेश को एक नई पहचान देती हैं। "अचल" जिसका अर्थ पहाड़ है, यहां वह निरन्तरता, बलशाली, विश्वसनीय तथा संवेदनशील गहराई को प्रदर्शित करता है। 
  • हिमाचल प्रदेश अपने आप में एक लघु संसार है, जहाँ पहुँचने के लिए पंजाब के मंदानों या शिवालिक पहाड़ियों या शिमला की पहाड़ियों के मध्य रास्ते से सुन्दर, शांत एवम् आकर्षक प्रदेश में प्रवेश मिलता है। प्रदेश की उच्च पर्वत चोटियों पर सारा वर्ष बर्फ का जमा रहना इस नाम को और भी सार्थक करता है। सांस्कृतिक और भौगोलिक रूप से हिमाचल प्रदेश हिमालय के पश्चिमी भाग में स्थित है। हिमालय पर्वत केवल पत्थर और मिट्टी का पहाड़ नहीं बल्कि यह भारत देश की आकांक्षा और स्वाभिमान का प्रतीक है और हिमालय पर्वत के साथ भारत के भूगोल, इतिहास, संस्कृति और साहित्य एवं कला का गहरा सम्बन्ध है। यह हिन्दुओं के देवाधिदेव 'शिव' का ससुराल है और कृष्ण भगवान ने तो स्वय हिमालय पर्वत को अपना स्वरूप माना है। श्रीमद्भागवत् गीता में लिखा है कि, 'स्थावराणां हिमालय' । अर्थात 'पर्वतों में मैं हिमालय हूँ'। 
  • श्रीमदभागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण, अर्जुन को उपदेश देते समय अपने विराट रूप को प्रदर्शित करते समय, इस वाक्य का प्रयोग करते हैं। महाकवि कालीदास ने हिमालय की महिमा को जानते हुए, इसे देव आत्मा हिमालय की संज्ञा दी है। 
  •  हिमालय के महत्व और इसके रहस्यों की तरफ सदैव ही संसार के लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ है। हिमालय कितना विशाल है इसका अनुमान लगाया जा सकता है कि भारत के राज्य हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, सियाचिन, उत्तराखंड, सिक्किम, असम, अरुणाचल तक हिमालय का विस्तार है। ये सभी राज्य हिमालय की गोद में ही हैं। इसके अतिरिक्त अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल और भूटान देश हिमालय के ही हिस्से हैं।
  •  भारतीय हिमालय के 4 भाग हैं: जम्मू-कश्मीर हिमालय (सिन्धु नदी से सतलुज नदी के बीच का भाग), गढ़वाल-कुमाँऊ हिमालय (सतलुज से काली नदी (सरयू) के बीच का भाग), नेपाल हिमालय (सरयू नदी से तीस्ता नदी के बीच का हिमालय तथा असम-अरूणाचल हिमालय (तीस्ता नदी से ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक का भाग) हिमालय पर्वत, कश्मीर घाटी से लेकर बर्मा तक फैला हुआ है। यह जम्मू और  कश्मीर से शुरू होते हुए हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल और कुमाऊ (उत्तराखण्ड), नेपाल दार्जिलिंग, सिक्किम, भूटान, नागालँड, असम, आदि क्षेत्रों में 250 किलोमीटर से 300 किलोमीटर तक चौड़ा व 2500 किलोमीटर तक लम्बाई में फैला है। सामान्यत: इसका विस्तार गिलगिट के निकट सिंधु नदी की मोड़ से असम में ब्रह्मपुत्र नदी की मोड़ तक माना जाता है, परन्तु संरचना एवं भूस्वरूप के आधार पर हिमालय का विस्तार इन सीमाओं के पार भी जाता है। 
  • जैन ग्रंथ 'जंबद्रीपप्रज्ञप्ति' में हिमवान की जंबूद्वीप के 6 वर्ष पर्वतों में गणना की गई है और इस पर्वतमाला के 'महाहिमवंत' और 'चुल्लहिमवंत' नाम के दो भाग बताए गए हैं। महाहिमवंत पूर्व समुद्र (बंगाल की खाड़ी) तक फैला हुआ और चुल्लहिमवंत पश्चिम और दक्षिण की और वर्षधर पर्वत के नीचे वाले सागर (अरब सागर) तक फैला है। इस ग्रंथ में गंगा और सिंधु नदियों का उद्गम चुल्ल हिमालय में स्थित सरोवरों से माना गया है। महाहिमवंत के 8 और चुल्ल के 11 शिखरों का उल्लेख जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति में है।
  •  इस ग्रंथ के अनुसार हिमालय के बीचोंबीच सुमेरू पर्वत है। सुमेरू के दक्षिण में हिमवान, हेमकूट तथा निषध नामक पर्वत हैं, जो अलग-अलग देश की भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं। सुमेरू के उत्तर में नील, श्वेत और श्रृंगी पर्वत हैं, वे भी भिन्न-भिन्न देशों में स्थित हैं। इस सुमेरू पर्वत को प्रमुख रूप से बहुत दूर तक फैले 4 पर्वतों ने घेर रखा है। इनके नाम हैं- पूर्व में मंदराचल, दक्षिण में गंधमादन, पश्चिम में विपुल और उत्तर में सुपार्रव। इन पर्वतों की सीमा इलावृत के बाहर तक है। सुमेरू के पूर्व में शीताम्भ, कुमुद, कुररी, माल्यवान, वैवंक आदि नाम के पर्वत बताए गए हैं। सुमेरू के दक्षिण में त्रिकूट, शिशिर, पतंग, रूचक और निषाद। सुमेरू के उत्तर में शंखकूट, ऋषभ, हंस, नाग और कालंज आदि पर्वतों का वर्णन है। हिमालय आदि काल से ऋषियों एवं तपस्वियों की भूमि रही है। आदि ग्रंथों से यह विदित होता है तथा सामान्य लोक मान्यता भी है कि रामायण काल के ब्रह्मा के पुत्र ऋषि अत्रि जिनका विवाह ऋषि कर्दम की पुत्री अनुसूइया से हुआ था, ऋषि दुर्वासा जिन्होंने सत युग में इन्द्र को तथा द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र साम्भ को शाप दिया था, ऋषि वशिष्ठ जो राजा दशरथ के राजगुरू थे, राजा बली जो असुरों के राजा थे तथा दान पुण्य में उनके समकक्ष कोई नहीं था को भी भगवान विष्णु ने अमरत्व का आर्शीवाद दिया था, जामवंत जो गंधर्व माता और अग्नि के पुत्र जिन्हें ऋक्षपति कहा जाता है जिन्होंनें हनुमान जी को उनकी शक्तियों के बारे में याद दिलाया था, परशुराम जो भगवान विष्णु के छठे अवतार थे, जिन्होंने श्रीराम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़ने पर श्रीराम जी को आर्शीवाद दिया था, ऋषि मार्कण्डेय जो भगवान शिव परम भक्त थे, जिन्होंने शिवजी की कठोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया इन्होंने महामृत्युंजय जाप को सिद्ध करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली थी, हनुमानजी जिन्हें कलियुग के अंत तक धरती पर रहने का वरदान मिला है तथा लंकापति रावण के छोटे भाई विभिषण जिन्हें भगवान राम ने चिरंजीवी होने का वरदान दिया था ये सभी हिमालय के किसी क्षेत्र में आज भी विद्यमान हैं। 
  • ऐसे ही महाभारत कालीन तीन लोगों, जिनमें शामिल है अश्वथामा (गुरू द्रोणाचार्य के पुत्र), जिन्होंने द्रोपदी के सो रहे पांच पुत्रों का वध किया तथा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में ब्रह्मास्त्र से वार किया था को भगवान श्रीकृष्ण ने तीन हजार वर्षों तक सशरीर भटकने का शाप दिया था, ऋषि व्यास जो ऋषि पराशर और सत्यावती के पुत्र थे, जिनका असली नाम कृष्ण द्वैपायन ऋषि था को वेद के चार भाग करने के कारण वेद व्यास कहा जाने लगा तथा कृपाचार्य जो कौरवों के कुलगुरु एवं अश्वथामा के मामा थे तथा महाभारत के युद्ध के उपरांत बच गए 18 महायोद्धाओं में से  एक थे को भी चिरंजीवी रहने का वरदान था, मान्यता अनुसार आज भी ये सभी हिमालय के किसी भाग में रहते हैं। कई धार्मिक विश्वास के अनुसार हिमालय पर्वत में सिद्धाश्रम नामक एक आश्रम है जहाँ सिद्ध योगी और साधु रहते हैं। तिब्बती लोग इसे ही शम्भल की रहस्यमय भूमि के रूप में पूजते हैं। एक अन्य परम्परा के अनुसार सिद्धाश्रम, तिब्बत क्षेत्र में कैलाश पर्वत के निकट स्थित है। इस अलौकिक आश्रम का उल्लेख चारों वेदों के अतिरिक्त अनेकों प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। इसके एक ओर कैलाश मानसरोवर है, दूसरी ओर ब्रह्म सरोवर है और तीसरी ओर विष्णु तीर्थ है। स्वयं विश्वकर्मा ने ब्रह्मादि के कहने पर इस आश्रम की रचना की थी। यह भी मान्यता है कि राम, कृष्ण, बुद्ध, शंकराचार्य, माँ आनन्दमयी और निखिल गुरु देव आदि दैवी विभूतियाँ सिद्धाश्रम में सशरीर विद्यमान हैं। ग्यांगुंज के नाम से प्रसिद्ध, एक रहस्यमयी धर्मोपदेश माना जाता है, जो एक परंपरा के अनुसार, हिमालय में एक गुप्त भूमि में स्थित है, जहां महान योगी, साधु और ऋषि रहते हैं। यह स्थान तिब्बतियों द्वारा शम्भाला की रहस्यमय भूमि के रूप में भी प्रतिष्ठित है। एक अन्य परंपरा के अनुसार, सिद्धाश्रम तिब्बती क्षेत्र में कैलाश पर्वत के पास स्थित है। यद्यपि कोई भी साधु, संन्यासी, यति, भिक्षु और योगी किसी भी नाम से सिद्धाश्रम को जानते होंगे या विभिन्न पंथों ने अपनी मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग पूजा या साधना विधियों का उपयोग इसके बारे में जानने के लिए किया होगा। 
Geographical Features of HP:- हिमालय के उद्भव, संरचना तथा उच्चावच को समझने के लिए उनकी निम्न विशिष्टताओं पर ध्यान देना आवश्यक है।

 (क) हिमालय पश्चिम में नागा पर्वत तथा पूर्व में नमचा बरवा शिखरों के मध्य एक उन्नतोदर चाप की आकृति धारण करता है। 

(ख) हिमालय के पश्चिमी एवं पूर्वी छोरों पर मुड़े हुए घुटने की भांति तीखे मोड़ दिखाई पड़ते हैं जिन्हें क्रमश: कश्मीर एवं असम 'सिनटैक्सिस' (Syntaxis) कहते हैं। इन्हीं मोड़ों से पश्चिम की ओर हिन्दुकुश सुलेमान तथा पूर्व की ओर पटकोई-नागा पहाड़ियां उत्तर दक्षिण दिशा ग्रहण करती है।

 (ग) हिमालय से प्रवाहित होने वाली अधिकतर प्रमुख नदियां (सिंधु, सतलुज, गण्डक अरुण, कोशी, करनाली, ब्रह्मपुत्र) हिमालय के पार तिब्बत पठार से निकल हिमालय की श्रेणियों के आर-पार प्रवाहित होती हैं। अर्थात् ये पूर्ववर्ती प्रवाह (Antecedent Drainage) के उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। ये मुख्य हिमालय में 2000 से 4000 मीटर गहरी खाईयां (Gorge) बनाती हैं।

 (घ) हिमालय की प्रमुख श्रेणी की ऊंचाई पश्चिम की अपेक्षा पूर्व की ओर अधिक है। अधिकतर ऊंची चोटियां-एवरेस्ट, कंचन जंघा, मालू धौलागिरी- पूर्वी हिमालय में मिलती हैं।

 (ड.) पश्चिम की ओर हिमालय की चौड़ाई अधिक है जबकि पूर्व की ओर कम हो जाती है।

 (च) पश्चिम की ओर हिमालय के तीन प्रमुख खण्ड-महान, लघु एवं शिवालिक-स्पष्ट दृष्टिगोचर होते हैं जबकि पूर्व की ओर से एक-दूसरे से सट जाते हैं। अत: हिमालय के अभिन्न अंग होने के कारण हिमालय पर्वत का देश के भूगोल, इतिहास, संस्कृति और कला में अपना विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान है।

Geographical Features of Himachal Pradesh HP:- हिमालय के उद्भव और विकास को समझने के लिए तृतीयक कल्प (Tertiary era) के पहले की दशा पर ध्यान देना अनिवार्य है। इस कल्प के प्रारंभ होने से पूर्व (7 करोड वर्ष) हिमालय के स्थान पर एक लम्बा संकरा जलमग्न क्षेत्र था जो 'टेथीस सागर' (Tethys Sea) के नाम से विख्यात है। इस टिथिस सागर के उत्तर एवं दक्षिण की ओर क्रमश: अंगारालँड एवं गोंडवानालैंड के दृढ़ भूखण्ड थे। हिमालय की प्रमुख श्रेणी में पूर्व कैम्ब्रियन की रवेदार नीस, शिष्ट क्वार्टजाइट, आदि आर्कियन युगीन चट्टानों की बहुलता इसका प्रमाण है कि इस टिथिस सागर में दृढ़ भूखण्डों से अपरदित होकर जाने वाला अवसाद निक्षेपित होता रहा। इसी प्रकार लघु हिमालय में, विन्ध्य श्रेणी में मिलने वाली चट्टानों के समकालीन चूना पत्थर एवं क्वार्टजाइट की प्रचुरता मिलती है। इनकी अत्यधिक मोटाई इस बात का प्रमाण है कि इन चट्टानों के निर्माणकारी अवसाद का जमाव क्रमश: धंसती हुई सागर तली पर दीर्घकाल तक होता रहा। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि महान हिमालय अक्ष के दोनों ओर दो समान्तर भू-सन्नतियां (Geosynclines) थीं। उत्तरी भूसन्नति में पुराजेव कल्प (Paleozoicera) के प्रारम्भ से तृतीयक (Tertiary) कल्प के प्रारम्भ  अवसाद निक्षेपित हुए जिनमें जीवावशेष युक्त चट्टानें कम पायी जाती हैं। ये दोनों भूसन्नतियां कई स्थानों पर परस्पर जुड़ी हुई थीं।

हिमालय कब और कैसे उपजा? :-Geographical Features of Himachal Pradesh HP

अनुसंधान करते वैज्ञानिक-भूगर्भवेत्ताओं के शब्दों में मानव का इस पृथ्वी पर एक लाख वर्ष का जीवन मात्र एक पलक झपकने के समान है और हिमालय बनाना सिर्फ साठ सैकंड। इससे हम इस कथा के ओर-छोर समय सीमा का अनुमान लगा सकते हैं। बीसवीं शताब्दी के सातवें में ही वैज्ञानिक कहने लगे थे कि भारत की सीमाएं कभी अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका महाद्वीपों से लगती थीं। इस महान द्वीप का नाम उन्होंने 'गोंडवाना' कल्पित किया। इस नाम का आधार आधुनिक मध्य प्रदेश के गोंडजन हैं। लगभग दस करोड़ वर्ष पूर्व भारत अपने अन्य महाद्वीपीय भागों से अलग होकर पुराने टेथीस सागर की ओर 12 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की रफ्तार से बढ़कर एशिया से टकराने जा रहा था। एशिया महाद्वीप तक पहुंचने और प्रथम टकराहट में इसे छः करोड़ वर्ष लगे और छः हजार किलोमीटर की यात्रा तय करनी पड़ी थी। इस टकराहट के साथ हिमालय का जन्म आधुनिक लद्दाख के 'लाटो' नामक स्थान पर हुआ। रोचक स्थिति यह है कि टेथीस सागर के लुप्त होते, दो महाद्वीपों-एशिया और भारत की टकराहट के आंखों दिखते प्रमाण हिमाचल के स्पिति, किन्नर प्रदेश और रामपुर में मिलते हैं।


Geographical Features of Himachal Pradesh HP:-हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति है 33°22" से 33°12" उत्तरी अक्षांश तथा 75°47" से 79°4" पूर्वी देशान्तर । इसकी पूर्वी दिशा में स्थित है तिब्बत देश, उत्तर में चिनार प्रदेश जम्मू तथा कश्मीर, दक्षिण-पूर्व में यमुना-गंगा की पवित्र धरती उत्तराखण्ड, दक्षिण में जाट प्रदेश हरियाणा एवं पश्चिम में भारत का उपजाऊ क्षेत्र तथा हराभरा मैदानी क्षेत्र पंजाब । हिमाचल प्रदेश की सारी भूमि पहाड़ियों एवं ऊंची-ऊंची चोटियों से सुसज्जित है। इन चोटियों की समुद्र तल से ऊंचाई 350 मीटर से 7000 मीटर के बीच में पाई जाती है। इस समय हिमाचल प्रदेश का क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है। उत्तराखंड तथा पूर्व में तिब्बत के साथ लगती हुई सीमा की लम्बाई 1170 किलोमीटर है। इसमें से 200 किलोमीटर के लगभग तिब्बत के साथ लगती अन्तर्राष्ट्रीय सीमा है। भारत के उत्तरी भाग में स्थित हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय का अंग है। " भूगोलकारों के अनुसार 15000 से 20000 लाख वर्ष पूर्व किन्नौर, लाहौल स्पिति और चौपाल आदि के क्षेत्र "पुरा मध्यसागर" (ज्मजीलै मं) के भाग थे और इसके साथ लगने वाले अन्य क्षेत्र भी गर्म-गहरे पानी के पदार्थ थे। धीरे-धीरे भर कर ये वर्तमान आकार में आए हैं। प्रदेश की धरती पंजाब के साथ लगती कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर और सिरमौर की रमणीक व सतलुज घाटियों से लेकर छोटे व बड़े पर्वतों का अद्भुत मिश्रण प्रस्तुत करती हैं। भूमि की अधिकत्तम लम्बाई चम्बा के उत्तर-पश्चिमी कोने से लेकर किन्नौर के दक्षिण-पूर्वी छोर तक 355 किलोमीटर है और अधिकत्तम चौड़ाई कांगड़ा के दक्षिण-पश्चिमी कोने से किन्नौर के उत्तर-पूर्वी कोने तक 270 किलोमीटर है। 

हिमाचल प्रदेश आकार में केरल, मणीपुर, मेघालय, सिक्किम, नागालँड, हरियाणा, मिजोरम और पंजाब राज्यों से बड़ा है। अगर भारतीय भूमि पर हिमालय पर्वत न होता तो यहां की भौगोलिक अवस्था, इतिहास कुछ और ही होता। हिमालय पर्वत अनेक स्थानों पर भारत की अन्तर्राष्ट्रीय सीमा बनाता है। भारत को बाहरी आक्रमणों से बचाने के साथ-साथ यह देश के मौसम व वनस्पति पर भी गहरा प्रभाव डालता । इसमें जड़ी-बूटियों का आपार भण्डार है। हिमाचल प्रदेश को पूर्ण रूप से समझने के लिए जरूरी है इसकी प्राकृतिक सम्पन्नता को जानना, जिसमें शामिल हैं, पर्वत, घाटियां, नदियां, झीलें, दर्रे, हिमनद तथा जलवायु । 

Source:- The Wonderland Himachal Pradesh

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